Monday, November 17, 2014

दोस्तों, कल किसी ने याद दिलाया की मैं लिखता था कभी, और उसी ने ये एहसास भी कराया की शायद में कहीं खो गया था दुनिया की इस भीड़ में इसी लिए अपने विचार प्रकट करे हुए ज़माना  हो गया। तोह सबसे पहले उस प्यारे से शख्स का शुक्रिया जिसने मुझे वापिस आने में मेरी मदद की और आज में ये लिख पाया।

सपने देखता हूँ मैं, कुछ बड़े, कुछ छोटे, कुछ उन्सुल्झे,
कुछ पराये और कुछ अपने देखता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।
कुछ आशा की किरण दे जाते हैं,
कुछ दिल में जाने कितने सितार बजातें हैं,
कुछ कहते हैं ज़रा ठहर और विचार कर, 
कुछ कहते हैं जो भी करना है बिंदास कर,
तोह इन्ही सब विचारों के लिए, सबको देखता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।

किसी में नदी के किनारे पर ठंडी हवा का झोंका,
किसी में किसी दोस्त ने हाथ पकड़ कर मुझे रोका,
किसी में प्यार भरे पलों से सजी हुई राहें,
किसी में खुदा खुद खड़ा था फैलाये अपनी बाहें,
किसी में पाओं के नीचे फूलों से सजी धरती,
किसी में मुझे खुद प्रकर्ति अपनी बाँहों में भरती,
तोह इसी खुशनुमा पलों के जैसे खुद को देखता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।

कभी बिना पंखों के आकाश की सवारी,
कभी खुदा की कुदरत ज़मीन पर उतारी,
कभी चाँद ने धरती पर अपनी चांदनी बिखारी,
कभी सूरज की तपिश से भबकी धरती सारी,
कभी किसी ने आँखों को भिगोया,
कभी किसी से मुस्कराहट फैली प्यारी,
बस इसी भावों में गोता लगाते हुए मोती समेटता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।

Saturday, March 10, 2012

सपने कहीं सो गए...........


आज कल ना जाने क्यों वोह सपने कहीं सो गए,
वोही सपने जिनके आने पर आधी रात में आँख खुलती थी,
तोह माँ सर पर हाथ फेर कर पूछती थी, की बेटा क्या हुआ कोई बुरा सपना देखा मेरे बच्चे ने।
शायद वोह भी अब मेरी तरह बड़े और अपने में इतने मस्त हो गएँ हैं,
की अब उस माँ की लोरी की जगह रात लैपटॉप से आ रहे गानों ने सज रही है,
जिसके चलते चलते ही अब सोने की आदत सी हो गयी है।

अब सुबह पिताजी उठाने के लिए आवाज भी नहीं लगाते ,
जिनसे दो मिनट और सोने की इल्तजा करने में चार मिनट लगते थे,
और फिर वोह दो मिनट दो घंटे से ज्यादा कीमती लगा करते थे,
मोबाइल अपनी अलार्म और स्नूज़ दोनों की व्यवस्था से जगाती है,
लेकिन एक मशीन से इल्तजाह नहीं करनी पढ़ती, जैसा कहते हो वैसे ही मान जाती है।

ना जाने क्यों भाई से झगडा हुए भी ज़माना हो गया,
झगडा तोह छोटी सी किताब पहले पढने की बात से शुरू होता था,
जो की फिर ये मेरे कमरे और तेरे कमरे की दीवार तक पहुँच जाता था,
लेकिन फिर उसके बाद उसी किताब को एक साथ पढने में अलग ही आनंद आता था,
अब भाई इबुक की प्रतियाँ दोनों ही जगह कॉपी कर देता है,
जब जिसके मन में आये अपने अपने मोबाइल या लैपटॉप पर अकेले ही पढ़ लेता है।

अब दोस्तों के साथ शाम को घूमने भी नहीं जाता,
वही जिन के साथ शाम को नुक्कड़ की चाए वाले की दूकान पे गपशप लगा करती थी,
और किसकी ज़िन्दगी में क्या चल रहा उसकी खेर खबर मिलती रहती थी,
अब फेसबुक के ज़रिये जब चाहे तब दोस्तों की ज़िन्दगी के बारे में पता करते रहते हैं,
और एक कप चाय अब आधे घंटे के बजाये पांच मिनट में ख़त्म हो जाती है,
और हाँ फेसबुक पर दोस्तों से गले मिलने की हसरत भी पूरी नहीं हो पाती है।


अब छोटी बेहेन खरीदारी करवाने के लिए नहीं जिदद्ती,
पहले तोह एक ड्रेस लेने के लिए कम से कम दस दुकानों के चक्कर लगवाती थी,
और अंत में थक हार के फिर पहली दूकान में वापिस ले जाती थी,
लेकिन उस घुमने में दस बार मुझसे पूछती तोह थी की कैसी लग रही हूँ मैं,
अब "ebay" पर  सारी चीज़े खुद ही चुन लाती है,
हमारी याद तोह सिर्फ पेमेंट के टाइम ही आती है,
तोह हमने ऐसा कार्ड कार्ड बनवा दिया है जो हमेशा उसी के पास रहे,
हमें बुलाने में बेचारी बार बार कष्ट क्यों सहे।



आज कल ना जाने क्यों वोह सपने कहीं सो गए................

Monday, February 6, 2012

ज़िम्मेदारी.....................

आज सोचा की पंख लगाऊँ और उडूं, 
छू कर आऊँ चाँद को और जीत लूं आसमान को।
फिर याद आया की अगर अभी निकल जाऊँगा, 
तोह बॉस ने कल ३ बजे की मीटिंग रखी है क्या तब तक लौट पाउँगा।।
तोह विचार बदला की आज पुराने दोस्तों से मिला जाये, 
पुरानी यादों को फिर से ताज़ा करा जाये।
तभी श्रीमती जी आवाज आई की घर का राशन पानी लाना है, 
और हाँ मम्मी जी का चश्मा भी बनवाना है ।।
चलो कोई न गली में बच्चो के साथ स्टापू ही खेल आता हूँ, 
अपने बचपन को दोबारा लौटा लाता हूँ।
बगल में बैठे बाबूजी बोले की बेटा बैल नई लगवानी है, 
और हाँ तुम्हे गाड़ी की सर्विस भी तोह करवानी है।।
तोह हमने श्रीमती जी आग्रह किया की रात तक सारे काम ख़त्म कर आऊंगा, 
फिर तुम्हे बाहर खाने पर लॉन्ग ड्राइव पर ले जाऊंगा।
वोह बोली की कहाँ अब रात में देर तक जग पाऊँगी, 
खुद नहीं उठूंगी तोह मुन्नी को स्कूल के लिए कैसे तैयार कराउंगी।।
सारा काम निपटा कर अब घर पर खाना खा रहा हूँ, 
अगले वीकेंड पर जरूर कुछ करूँगा खुद को मना रहा हूँ।
फिर भी दिल में ख़ुशी है और तस्सल्ली भी, 
की मैं अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा रहा हूँ।।

Sunday, December 11, 2011

शादी के साथी.................

कल घर पर पहुँचते ही मम्मी का फरमान जारी हुआ की सब जल्दी से तैयार हो जाएँ एक घंटे में पार्टी के लिए निकलना है| मैंने पूछा किसी की शादी है क्या, तोह पता चला की किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ लड़के की शादी है| अब दूर की शादी थी तोह मैंने पूछ ही लिया, की कोई जान पहचान का भी है वहां या मैं अकेला ही वहां अब्दुल्ला दीवाना बन कर घूमूँगा| "अरे नहीं, वहां तुझे राजू भैया भी मिलेंगे, और उन के बच्चे भी होंगे वहां पर, तू उन के संग घूम लियो", मम्मी ने कहा| ये बात सुन कर कुछ जान में जान आई, चलो तैयार हो कर गाडी में सबको लेकर वहां पहुंचते हुए रस्ते भर सोचता रहा की उन बच्चो के बीच में मैं क्या करूँगा, पता नहीं वोह मेरे संग घूमना पसंद करेंगे की नहीं| वहां पहुँच कर मन में एक ख्याल आया की बच्चे ही तोह है, तोह उन्हें क्या पसंद होगा बचपना, तोह आज की रात उसी बचपने के नाम| बस फिर क्या था, सारे आंटी अंकल को मिलने और पाऊँ छूने के कार्यक्रम के बीच, मेरी आँखे तोह सिर्फ उन बच्चों को तलाशने में लगी हुई थी| तभी मुझे मिलवाया गया मेरे अगले दो या लगबघ तीन घंटे के साथियों से, जिसमे से दो नौंवी और दसवी में पढ़ती थी और उनकी एक छोटी सी बहिन तीसरी कक्षा में थी| तोह ये थे मेरे आज की शाम के साथी, मैं उन्हें पहले भी मिल चूका था क्यूंकि वोह मेरी दूर के रिश्ते में बहने ही थी तोह खास परिचय करने की जरुरत नहीं पड़ी बस एक दुसरे के हाल चाल पूछने के बाद मैंने ही बोला की आप लोगों का क्या प्लान है|

छोटी वाली को तोह गुब्बारे से खेलना था, तोह हमने पहले उसे  गुब्बारा दिलवाया और वोह तोह उसी में मस्त हो गयी और रह गए हम तीन| चलो मैं तोह निश्चय कर के आया था, अपना दिमाग नहीं लगाऊंगा और जो वोह दोनों कहेंगी वही होगा चाहे लोग जो मर्जी सोचे| पहले बड़ी वाली "ईशा" बोली की चलो चौमिन खाते है, मैंने कहा चलो तभी "निशा"  ने कहा नहीं चौमीन तोह हम घर पर भी खा सकते हैं, पहले हम पिज्जा खाएंगे और अचानक से वही हुआ जिसका मुझे डर था| आपने अंदाजा तोह लगा ही लिया होगा, दोनों ने पलट कर मेरी तरफ देखा और मैं ऐसा जताने की कोशिश करने लगा की जैसे मैंने कुछ सुना ही नहीं, तभी दोनों की आवाज़े एक संग मेरे कान में गूंजने लगी, "की आप  बताओ क्या खाएं"| दोनों की आँखे मेरी तरफ टकटकी लगाएं मेरे जवाब का इंतज़ार कर रही थी, और में एक एक कर दोनों के चेहरे की तरफ देखने की कोशिश में था की कहूं तोह कहूं क्या| मन तोह कर रहा था की पिज्जा बोल दूं लेकिन फिर मेरे मुहं से बहुत ही धीमी सी आवाज़ निकली "तुम लोग जो भी बोलो, मुझे तोह सब अच्छा लगता है"| बहुत सी मंत्रणा के बाद ये फैसला हुआ की पहले चौमिन चखने के बाद पिज्जा पर धावा बोला जाएगा, चलो जी एक छोटी सी  प्लेट और उस पर हम तीनो अपने अपने कांटे लेकर उसपर टूट पड़े और फिर भी हम उसे पूरा ख़तम नहीं कर पाए, क्या करे स्वाद ही इतना शानदार था की आपका चौमिन से विश्वास उठ जाए| फिर हमारी तिगडी निकल पड़ी हॉल के बीचो बीच लगे पिज्जा स्टाल की तरफ, हम तीनो येही दुआ मन रहे थे की पिज्जा कम से कम पिज्जा जैसा निकल जाए, बस हम सोचेंगे की हमारा आना और खाना दोनों सफल हो गया| आखिरकार भगवन ने हमारी दुआ कबूल ली, और पिज्जा का काम तमाम करने के बाद हमने फैसला किया पहले एक इंस्पेक्शन सुर्वे हो जाए, ताकि सारी चीज़ों में से अपनी मन पसंद की चीज़ें चुनी जा सके| तोह घुमते घुमते हमारी नज़र पड़ी पाओ भाजी जिसका मेरे और निशा के विरोध के बावजूद, ईशा की तिर्व इच्छाओं का सम्मान करते हुए ले ली गयी| पहले टुकड़े में ही उसके लाजवाब स्वाद का अंदाजा हो गया, और फिर हम तीनों उस बेचारी छोटी सी प्लेट पर टूट पड़े, अब फोर्मलिटी का समय नहीं था, जिसके हाथ जितना बड़ा टुकड़ा लगा उसकी किस्मत| तोह वहीँ पर खाते खाते निशा ने एक और पो भाजी का आर्डर दे दिया गया, और फिर एक और करते हुए तीन चार प्लेट साफ़ हो गयी| फिर हम दोनों ने ईशा को धन्यवाद् देते हुए उससे अगले स्टाल का नाम बताने का कार्यभार सौप दिया|

इसी बीच छोटी बच्ची रोती हुई वहां आ पहुंची, उसका गुब्बर्रा टेंट की छत पर चढ़ गया था हमने लाख समझाया की बेटा वोह वापिस नहीं आ सकता आप दूसरा ले लो लेकिन वोह मानी नहीं| जैसे ही हम समझाने की कोशिश करते, उसका वोलयूम और और तेज़ हो जाता, तोह उसको शांत करने के लिए हमने सोचा की एक बार कोशिश कर के देख लेते हैं, तोह उठाए हमने स्टाल के पीछे पढ़े हुए बांस के डंडे और ऊपर कपडे पर मारना शुरू कर दिया, दो तीन बार मारने पर वोह गुब्ब्बर्रा यो निकल आया, और वोह बच्ची खुश भी हो गयी| लेकिन हमने सोचा जिस तरह लोग हमें घूर रहे थे की यहाँ बहुत तमाशा कर लिया, अब किसी और कोने में चलने में ही बेहतरी है| पेट तोह लगभग भर ही चूका था, तो अब हमें वहां आइसक्रीम का स्टाल दिख गया| ईशा को सर्दी थी तोह उसने मना कर दिया, लेकिन हम दोनों वहां पहुंचे तोह देखा की चार तरीके की आइसक्रीम, बस सोच ही रहे थे की कौन सी ले तभी मैंने कहा भैया सबको मिक्स करके दे दो| वोह तोह ऐसा खुश हुआ की उसे भी मिल गया कुछ अलग तरीके का बनाने का, और निशा ने बुट्टर स्कोत्च आर्डर कर दी| हम दोनों अपनी अपनी आइसक्रीम खा ही रहे थे, की ईशा से रहा नहीं गया, वोह भी आ गयी चम्मच ले कर हमारी आइसक्रीम टेस्ट करने और दोनों से एक एक चम्मच लेने के बाद तोह वोह मेरी भी आधि आइसक्रीम खा गयी| बस अब क्या था हमने मिक्स के तीन आर्डर और दे दिए ओर हसीं ठहाको के बीच वोह भी कब ख़तम हो गयीं पता ही नहीं चला | बस फिर क्या था, हमारी देखा देखि तोह वहां पर मिक्स लेने वालों की कतार लग गयी| लेकिन अब हम लोग कहाँ रुकने वाले थे, निशा बोली की इसे कोल्द्द्रिंक में दाल कर पीते हैं और मज़ा आयेगा, मैंने कहा क्यूँ नहीं चलो और कोल्द्द्रिक के आधे आधे ग्लास ले कर पहुचगए आइसक्रीम के स्टाल पर | और फिर दो तीन बार हमने कोल्द्द्रिंक और आइसक्रीम के अलग अलग तरीके से मिश्रण कर डाले, जिसमे हम तीनो ही बहुत मज़े उठाये|

बस इसी सब के बीच हमारे माता पिता वहां आ पहुंचे, और हमारे हांथों में वोह स्पेशल दिशेस का नाम पूछने लगे की हमने तोह कहीं नहीं देखि| तोह जैसे ही हमने इसका राज़ बताया और जो  ईशा को डांट पड़ी है उसका तोह कोई जवाब ही नहीं, यहाँ उसको डांट पढ़ रही थी और हमारी हंसी ही नहीं रुक रही थी| तब मैंने और निशा ने बोल ही दिया " आंटी हम तोह मना कर रहे थे लेकिन ये हमारी सुनती ही कहाँ है, बहुत बिगड़ गयी है ये", इसके पीछे असली मकसद तोह उसकी मम्मी का ध्यान भटकना था, और  हुआ भी येही वोह हंस पढ़ी और ईशा की जान बची| बस अब हम तीनों ने सोचा दूल्हा दुल्हन से भी मिल ही आते हैं, तोह पहुँच गए स्टेज पर हंगामा करने| वहां उन दोनों को थोडा छेड़ने और फोटो खिचवाने के बाद हम चल पढ़े माता पिता के पास, जो की जाने के लिए बेक़रार हो रहे थे, फिर हम तीनों ने एक दुसरे से नंबर एक्सचेंज करने के साथ एक दुसरे से टच  में रहने का वादा भी किया| वापिस आते हुए मैं सोच कर मुस्कुराता रहा की इस शादी में शायद लोग जैसे आये होंगे और वैसे  ही चले गए होंगे, लेकिन मैं ही शायद खुशनसीब इंसान था जो की पहले सोच रहा था की अकेला शादी में क्या करूँगा, और वहां पर सबसे ज्यादा मस्ती कर के लौट रहा था  ........................... 

Monday, October 31, 2011

दिवाली की शुभकामनाए.............

 नमस्कार दोस्तों, 
आप सब से इतनो दिनों से दूर रहने के लिए क्षमा चाहता हूँ, बस तोह इस दिवाली कुछ ऐसा हुआ की मैं अपने अप को रोक नहीं सका और बस आ गया आप लोगों के समक्ष अपने विचार प्रकट करने..

२६-१०-२०११ 
दिवाली की सुबह: आज मन ने कहा की इस दिवाली को किसी नए तरीके से मनाया जाए, जो आज तक नहीं किया वोह किया जाए| बहुत से विचारों ने मन की लोकतान्त्रिक संसद में अपनी अपनी बात रखना शुरू की, उनमे से एक सुझाव था की किसी को जाकर दान किया जाए, और एक सुझाव ऐसा भी था की परिवार के साथ कही देल्ही के बाहर लॉन्ग दीराइव पर जाया जाए| तोह संसद में एक लम्बी अहिंसक और शांतिपूर्ण बहस और जिद्दोजहद के बाद इस बात आम सहमति के बाद पर फैसला हुआ की इस बार मैं सब से बड़े जन संपर्क आन्दोलन के तहद अपने फ़ोन की दिरेक्तोरी से एक एक करके सबको दिवाली की शुभकामनाए दूंगा, चाहे मेरी उससे पिछले एक साल में कभी बात न हुई हो, कहना बहुत आसान था लेकिन विश्वास कीजिये करना उतना ही मुश्किल| लेकिन मेरा मानना है की  एक बार अप फैसला ले लेते है तोह उसके बाद कभी पीछे नहीं हटना चाहिए, तोह संकल्प के साथ कुछ नियमों पर भी सहमति तय हुई जो की इस प्रकार थे:
१. सबको एक एक कर के कॉल मिलायी जाएगी
२. अगर किसी का फ़ोन बिजी जाता है या स्विच ऑफ होता है तोह उसे दोबारा कॉल नहीं की जाएगी
३.  और किसी से कॉल नहीं उठाने के संधर्भ में सिर्फ एक बार दोबारा अपने नंबर से कॉल की जाएगी 
४. अगर फ़ोन कोई और उठता है तोह उसको एक बार फिर पुनः कॉल की जाएगी
अब फ़ोन उठाते ही संसद के बहुत महत्वपूर्ण मंत्रालय की अप्पत्ति प्रस्तुत हुई, सोचिये किसकी .....
जी सही सोचा आपने वित्त मंत्रालय की जिसके हिसाब से इस योजना को सफलता पूर्वक पूरा करने के लिए पर्याप्त राशी उपलब्ध नहीं है| अब क्या करे? तभी याद आया की घर का सार्वजानिक मोबाइल किस दिन काम आयेगा| तोह शुरू हुआ कॉल मिलाने का सिलसिला, अब इसमें सबसे मज़ेदार बात ये थी की अब मैं एक अनजान नंबर से सबको फ़ोन करने वाला था| बस क्या कहने अब इससे ये पता लगा की मेरे दोस्त दूसरों से कितनी फोर्मल्ली और दोस्तों से कितनी कैज़ुअली बातें करते हैं| 
तोह पहले फ़ोन मिलाते ही मैंने दिवाली की शुभकामनाए दी और उसके बाद रेस्पोंसे में मुझे अधिकतर बहुत ही धीमे और मधुर स्वर में शुभ्कुम्नाए वापिस मिली, लेकिन फिर मैंने उन्को  पहचान के लिए कुछ हिंट दिया, किसी ने पहचाना, और किसी ने नहीं और जैसे ही नाम की पहचान करवाई गयी आवाज़ में एक कांफिडेंस आ गया और उसकी कुछ झलकिया निचे दी गयीं है......
१. 
दोस्त: हेल्लो
मैं: हैप्पी दिवाली
दोस्त:(धीमे स्वर में) हैप्पी दिवाली आपको भी, वैसे आप कौन?
मैं: हम वोह हैं जिनके जासूस कोने कोने में फैले हुए हैं.
दोस्त:(धीमे स्वर में) अच्छा जी.
मैं: अभी भी नहीं पहचाना.
दोस्त: नहीं.

मैं: आपका एक पुराना दोस्त था अमिटी में.
दोस्त:(हसीं के साथ) अच्छा अमर, और क्या हाल हैं........

२.   
मैं: हेल्लो, हैप्पी दिवाली.........
दोस्त:(बहुत धीमे स्वर में) हांजी, आप कौन?
मैं: पहले हैप्पी दिवाली का जवाब तोह दीजिये.
दोस्त:(धीमे स्वर में) ज़रूर, हैप्पी दिवाली आपको भी, लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं.
मैं: हम वोह हैं जो आपसे बहुत झगडा करते थे.
दोस्त: अरे अमर तुम, नंबर चैंज कर लिया क्या .........

३. 

दोस्त: हांजी कौन बोल रहा है
मैं: हैप्पी दिवाली.........
दोस्त:(धीमे से बहुत ही मीठे स्वर में) हेप्पी दिवाली आपको भी.
मैं: पहचाना की नहीं
दोस्त:(धीमे स्वर में) नहीं, कौन है आप.
मैं: हम वोह हैं जो मेट्रो में आपको परेशान करते हैं .
दोस्त: अरे अमर सर, आप .........

४. 

मैं: दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.........
दोस्त:(बहुत ही इज्जत भरे स्वर में) हेप्पी दिवाली आपको भी.
मैं: नहीं हमने हिंदी में बोला है, अप भी हिंदी में जवाब देने की कृपा करें
दोस्त:(सँभलते हुए) जी आपको भी दिवाली की बहुत बहुत (हँसते हुए) शुभकामनाए......
मैं: धन्यवाद्, क्या आपने हमें पहचाना
दोस्त: नहीं, लेकिन कुछ कुछ यद् आ रहा है.
मैं: क्या आपको पता है की आपका खाना लंच से पहले कौन खा जाता था.
दोस्त: अबे अमर, तू इतने दिनों बाद, और ये क्या था बे..................

५. 
आंटी: हेल्लो ..........
मैं: हैप्पी दिवाली आंटी,
आंटी: हैप्पी दिवाली, आप कौन
मैं: आंटी हम दो छोटे बच्चे जो आपके कुत्ते को छेड़ते रहते थे, याद आया
आंटी: नहीं तोह, ठीक से याद नहीं आ रहा है
मैं: आंटी हम आपके सामने वाले कुअर्टर में रहते थे और अपने एक बार हमें घर में बंद कर दिया था, मम्मी को दिखाने के लिए.
आंटी: अच्छा अरोरा का लड़का.....................

६.

मैं: हेल्लो,
दोस्त: कौन बोल रहा है
मैं: हम आपके दुश्मन बोल रहे हैं, हैप्पी दिवाली
दोस्त: हम दुश्मनों को विश नहीं करते
मैं: लेकिन हम तोह करते हैं, फिर से हैप्पी दिवाली
दोस्त: हैप्पी दिवाली, लेकिन याद नहीं आ रहा
मैं: हम आपके सबसे बड़े वाले दुश्मन बोल रहे हैं, यानि बहुत ही बड़े वाले दुश्मन
दोस्त:  अबे तेरी तोह, इतने सालों से कहाँ था बे..............

७.
दोस्त: हांजी बोलिए
मैं: अरे वाह इतनी इज्जत,  कभी दोस्तों से भी हांजी करके बात कर लिया कर
दोस्त: जी कौन मैंने आपको पहचाना नहीं
मैं: बेटा, रोज काम्प्लेक्स में मिलने के बाद भी नहीं पहचाना.
दोस्त: अबे अमर तू
मैं: बस फिर आ गया तू तड़क पर, चल हैप्पी दिवाली........

९.
दोस्त: हेल्लो जी
मैं: हेल्लो, कौन बोल रहा है
दोस्त:(उत्तेजित होते हुए ) जी, अपने फ़ोन मिलाया है , आप बताइए
मैं: हैप्पी दिवाली
दोस्त: हैप्पी दिवाली, लेकिन अप बोल कौन रहे हैं
मैं:येही तोह हम पूछ रहे हैं की आप कौन बोल रहे हैं,
दोस्त: अब बस बहुत मज़ाक हो गया, आप बताइए.
मैं: चलिए हम आपके ग्रुप के सबसे बड़े घुमक्कड़ बोल रहे हैं
दोस्त: अबे अमर, मैं तोह डर ही गया था और कहाँ घूम रहा है आज...........


Thursday, July 28, 2011

द गल्ली क्रिकेट भाग १ ............

आज हमारे मोहल्ले में बच्चो की छुट्टी थी, और उस पर घने बादलों से ढका आसमान। एक सुहाना मौसम और उस पर छुट्टी, यह एक सुनहरा मौका था बाहर निकल कर कुछ खेलने कूदने का। वैसे तो आज कल माता पिता अपने बच्चों को कम ही बाहर निकलने देते हैं लेकिन इस बार उनके पास धूप में बीमार होने का बहाना भी नहीं था। इसलिए चार पांच दोस्त इकठ्ठा हुए और चल पड़े टीम के लिए खिलाडियों की तलाश में, सबने मिल कर बिलकुल एक मैनेजमेंट ग्रुप की तरह आपस में काम का बटवारा कर दिया। एक को काम मिला बाल का इंतज़ाम करने का, और दो को खिलाडियों की भर्ती करने का यानि रेक्रूइत्मेन्त टीम और एक को खेलने के सामान का प्रबंध यानि प्रोकुरेमेंट करने का। और जो अंत में बच गया वोह बिलकुल एक मेनेजर की तरह कुछ करने की जगह सबको सलाह देने और गली में खेलने की सबसे सही जगह तलाशने में लग गया। ऐसा मत समझिये की उसका कोई आसान काम था, एक पार्क में और एक गली में खेलने में बहुत फर्क होता है। गली में आप जहाँ मर्जी नहीं खेल सकते, जैसे ही मेनेजर साहब ने किसी के घर के आगे रखी कुछ बेकार रखी ईटों को हाथ लगाया तभी ऊपर बालकोनी में कड़ी आंटी चिल्ला कर बोलीं, "बेटा यहाँ मत खेलना मैंने अभी मुन्ने को सुलाया हैं" "ठीक है आंटी अप चिंता मत करो हम बिलकुल बिना आवाज़ के खेलेंगे", मेनेजर साहब बोले, तभी रेक्रुइत्मेन्त टीम के मेम्बर हल्ला मचाते हुए आये की सब को बोल दिया है, बस अभी तैयार हो कर रहे हैं। बस यह सुनना था आंटी फिर भड़क गयीं और बोली "बस इसिलए मैं कह रही थी, जाओ कहीं और जा कर खेलो" बस मेनेजर साहब ने भी सुना डाला रेक्रुइत्मेन्त टीम को, और फिर प्यार से आंटी से बोले " आंटी बस लास्ट बार अब बिलकुल शोर नहीं मचेगा, मैं वादा करता हूँ" आंटी कहाँ मानने वालीं थी, तोह अंततः खेलने का स्थान चार पांच घर पीछे की तरफ कर दिया गया वोह भी इसलिए की जिस घर के सामने यह नया स्थान पक्का हुआ था उनके घर का एक बच्चा टीम में अभी अभी भर्ती हुआ था। तोह दो ईटों की एक विक्केट बन गयी और अंदाजे से दूसरी तरफ एक ईट का विक्केट तैयार किया गया, कुछ दर्शक भी इक्कठा हो गए जो की अपनी अपनी बालकोनी वाली आरक्षित सीटों से खेल का लुत्फ़ उठाएँगे। इतनी देर में बाकी के खेल खेलने वाले बच्चे भी गए, तभी दूर से प्रोकुरेमेंट वाले बच्चे को आते देख दो बच्चे बल्ला लेने उसकी तरफ दौड़े, तभी मेनेजर साहब चिल्लाये "अबे क्यों भाग रहे हो, पहले राकेश को बाल तोह लाने दो" इतना सुनना था की एक आवाज़ आई, की जबतक वोह आयेगा तब तक टीम तो बाट लो। बस इसी के साथ टीम बाटने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया की शुरुआत हुई, मेनेजर साहब और रेक्रुइत्मेन्त टीम के हेड को टीमों के कप्तान के रूप में चुना गया और उन्होंने एक एक कर अपने मुताबिक खिलाडियों का चयन कर लिया। उसके बाद मेनेजर साहब बोले "अरे यार यह कोई बात हुई, तुम्हारे पास तोह एक बॉलर ज्यादा है", बस इतना सुनना था की दूसरी टीम वाले भड़क कर बोले "अरे बिलकुल सही टीम बाटी है, तू हर वक़्त रोया मत कर" लेकिन फिर भी समझाने भुजाने के बाद एक खिलाडी की अदला बदली हो गयी, और इसी बीच नयी बाल भी गयी जिसका पैसा बराबर बाँट कर सबसे वसूला गया। जिसके पास नहीं थे उसने अपने किसी दोस्त से उधार मांग कर बाद में देने का वादा कर दिया, और इसी के साथ गली क्रिकेट की अधिकारिक शुरुआत हुई..........................

Saturday, June 11, 2011

डॉक्टरों की दूकान.................

"रवि जल्दी नीचे  आओ, शांति को चोट लग गयी है" माँ की नीचे वाली मंजिल से चिल्लाने की आवाज़ आते ही रवि ने आव देखा न ताव, नंगे पाँव ही निचे भागता हुआ पहुंचा | शुक्र है की थोडा संभल कर आया नहीं तोह फिर माँ को रवि के लिए किसी और को आवाज़ लगानी पड़ती | नीचे बेचारी ६ साल की छोटी सी शान्ति रोए जा रही थी, उसके दाएं हाथ की दूसरी ऊँगली में से खून बह रहा था, और उसमे से चोट ठीक तरह से दिखाई नहीं दे रही थी | माँ ने उसके हाथ को अपने हाथ में पकड़ रखा था और शांति से ज्यादा तोह माँ डरी हुई लग रही थी, और उनका डरना वाजिब भी था, क्योंकि वोह तोह माँ है ना | तभी माँ ने रोते हुए सुर में बताया की "इसकी ऊँगली गेट बंद करते समय बीच में आ गयी है, जल्दी कुछ कर", इसी के साथ माँ उसकी ऊँगली में फूँक मारने में लग गयी | वोह बेचारा भी क्या कर लेता, उसने पापा को आवाज़ लगा दी, बस इतने में तोह पूरा घर निचे हॉल में इक्कठा हो गया | सब का आते ही वही पुराना घिसा पिटा सवाल "हाय राम, चोट कैसे लग गयी", और फिर वही पुराने जवाब | इन सवाल जवाबों के बीच शांति तोह बेचारी कहीं खो गयी रह गया तोह सिर्फ सवाल और जवाब का एक सिलसिला | तभी चाचीजी बोली "अरे यह सब छोडो पहले इसकी कोई ऊँगली दबा कर खून तोह रोको", इतना सुनना था की चाचाजी भी जोश में आ गए और बोले "अरे नहीं, इसकी ऊँगली नल के पानी के नीचे रखो, इससे खून भी बंद हो जाएगा और घाव भी दिख जाएगा" | तभी ताई जी आवाज़ आयी "अरे यह छोटी सी चोट के लिए क्या हंगामा मचा रखा है, कोई बाहर से मिटटी ला के लगा दो सेकंड में खून रुक जाएगा" | तभी दादीजी चिल्ला कर बोली, लड़की की ऊँगली ख़राब करनी है क्या " उसकी ऊँगली पानी  और dettol  से साफ़ कर के  पट्टी बांद दो" | इसी सब के बीच भुआ शान्ति की ऊँगली साफ़ कर उसे चुप कराके आंसूं पोछने में लग गयी | तभी बच्चा पार्टी दौड़ पड़ी दवाइयों के डब्बे को ढूँढने जो की शायद द्रविंग रूम में टीवी की नीचे वाली खाने में पड़ा था |  फूफा जी भी आये हुए थे, तोह वोह बोले की मेरी जानकारी का एम्स में डॉक्टर है मैं उससे पूछता हूँ, और फिर वोह फ़ोन करके एक्सपर्ट अड़वाइस लेने में व्यस्त हो गए | हमें समझ में नहीं आ रहा था ऐसी कौनसी बड़ी चोट लग गयी जिसके लिए इतने बड़े अस्पताल में फ़ोन करना पड़ रहा है | लेकिन घर के दामाद के सामने कोई क्या बोलता, सब भुआ से पूछने लग गए, बहुत बड़े डॉक्टर साहब होंगे, वोह तोह दो सेकंड में इलाज बता देंगे | दादी बोली भी "इतनी बड़ी चोट नहीं है क्यों छोटी बात को बढा कर बच्ची को हौला बैठा रहे हो" | इससे पहले की फूफा जी अपनी कॉल ख़तम करते, तभी बाहर से बड़े भैया बगल में रह रहे डॉक्टर साहब के संग रास्ते से सबको हटाते हुए बोले  "आप सब अपनी दोक्टरी की दुकाने बंद कर दे, डॉक्टर साहब आ गए हैं", और डॉक्टर साहब चोट देख कर बोले " की घबराने की कोई ज़रुरत नहीं है, मामूली सी चोट है में द्रेस्सिंग कर देता हूँ, कल तक शांति ठीक हो जाएगी". शांति पट्टी बंधते हुए बिलकुल भी नहीं रो रही थी, वोह शायद खुद के दर्द से ज्यादा उन बड़े और समझदार लोगों के दस मिनट पहले किये गए कार्यक्रम के बारे में सोचने में व्यस्त थी......