आज हमारे मोहल्ले में बच्चो की छुट्टी थी, और उस पर घने बादलों से ढका आसमान। एक सुहाना मौसम और उस पर छुट्टी, यह एक सुनहरा मौका था बाहर निकल कर कुछ खेलने कूदने का। वैसे तो आज कल माता पिता अपने बच्चों को कम ही बाहर निकलने देते हैं लेकिन इस बार उनके पास धूप में बीमार होने का बहाना भी नहीं था। इसलिए चार पांच दोस्त इकठ्ठा हुए और चल पड़े टीम के लिए खिलाडियों की तलाश में, सबने मिल कर बिलकुल एक मैनेजमेंट ग्रुप की तरह आपस में काम का बटवारा कर दिया। एक को काम मिला बाल का इंतज़ाम करने का, और दो को खिलाडियों की भर्ती करने का यानि रेक्रूइत्मेन्त टीम और एक को खेलने के सामान का प्रबंध यानि प्रोकुरेमेंट करने का। और जो अंत में बच गया वोह बिलकुल एक मेनेजर की तरह कुछ करने की जगह सबको सलाह देने और गली में खेलने की सबसे सही जगह तलाशने में लग गया। ऐसा मत समझिये की उसका कोई आसान काम था, एक पार्क में और एक गली में खेलने में बहुत फर्क होता है। गली में आप जहाँ मर्जी नहीं खेल सकते, जैसे ही मेनेजर साहब ने किसी के घर के आगे रखी कुछ बेकार रखी ईटों को हाथ लगाया तभी ऊपर बालकोनी में कड़ी आंटी चिल्ला कर बोलीं, "बेटा यहाँ मत खेलना मैंने अभी मुन्ने को सुलाया हैं"। "ठीक है आंटी अप चिंता मत करो हम बिलकुल बिना आवाज़ के खेलेंगे", मेनेजर साहब बोले, तभी रेक्रुइत्मेन्त टीम के मेम्बर हल्ला मचाते हुए आये की सब को बोल दिया है, बस अभी तैयार हो कर आ रहे हैं। बस यह सुनना था आंटी फिर भड़क गयीं और बोली "बस इसिलए मैं कह रही थी, जाओ कहीं और जा कर खेलो"। बस मेनेजर साहब ने भी सुना डाला रेक्रुइत्मेन्त टीम को, और फिर प्यार से आंटी से बोले " आंटी बस लास्ट बार अब बिलकुल शोर नहीं मचेगा, मैं वादा करता हूँ"। आंटी कहाँ मानने वालीं थी, तोह अंततः खेलने का स्थान चार पांच घर पीछे की तरफ कर दिया गया वोह भी इसलिए की जिस घर के सामने यह नया स्थान पक्का हुआ था उनके घर का एक बच्चा टीम में अभी अभी भर्ती हुआ था। तोह दो ईटों की एक विक्केट बन गयी और अंदाजे से दूसरी तरफ एक ईट का विक्केट तैयार किया गया, कुछ दर्शक भी इक्कठा हो गए जो की अपनी अपनी बालकोनी वाली आरक्षित सीटों से खेल का लुत्फ़ उठाएँगे। इतनी देर में बाकी के खेल खेलने वाले बच्चे भी आ गए, तभी दूर से प्रोकुरेमेंट वाले बच्चे को आते देख दो बच्चे बल्ला लेने उसकी तरफ दौड़े, तभी मेनेजर साहब चिल्लाये "अबे क्यों भाग रहे हो, पहले राकेश को बाल तोह लाने दो"। इतना सुनना था की एक आवाज़ आई, की जबतक वोह आयेगा तब तक टीम तो बाट लो। बस इसी के साथ टीम बाटने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया की शुरुआत हुई, मेनेजर साहब और रेक्रुइत्मेन्त टीम के हेड को टीमों के कप्तान के रूप में चुना गया और उन्होंने एक एक कर अपने मुताबिक खिलाडियों का चयन कर लिया। उसके बाद मेनेजर साहब बोले "अरे यार यह कोई बात हुई, तुम्हारे पास तोह एक बॉलर ज्यादा है", बस इतना सुनना था की दूसरी टीम वाले भड़क कर बोले "अरे बिलकुल सही टीम बाटी है, तू हर वक़्त रोया मत कर"। लेकिन फिर भी समझाने भुजाने के बाद एक खिलाडी की अदला बदली हो गयी, और इसी बीच नयी बाल भी आ गयी जिसका पैसा बराबर बाँट कर सबसे वसूला गया। जिसके पास नहीं थे उसने अपने किसी दोस्त से उधार मांग कर बाद में देने का वादा कर दिया, और इसी के साथ गली क्रिकेट की अधिकारिक शुरुआत हुई..........................
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