आज कल ना जाने क्यों वोह सपने कहीं सो गए,
वोही सपने जिनके आने पर आधी रात में आँख खुलती थी,
तोह माँ सर पर हाथ फेर कर पूछती थी, की बेटा क्या हुआ कोई बुरा सपना देखा मेरे बच्चे ने।
शायद वोह भी अब मेरी तरह बड़े और अपने में इतने मस्त हो गएँ हैं,
की अब उस माँ की लोरी की जगह रात लैपटॉप से आ रहे गानों ने सज रही है,
जिसके चलते चलते ही अब सोने की आदत सी हो गयी है।
अब सुबह पिताजी उठाने के लिए आवाज भी नहीं लगाते ,
जिनसे दो मिनट और सोने की इल्तजा करने में चार मिनट लगते थे,
और फिर वोह दो मिनट दो घंटे से ज्यादा कीमती लगा करते थे,
मोबाइल अपनी अलार्म और स्नूज़ दोनों की व्यवस्था से जगाती है,
लेकिन एक मशीन से इल्तजाह नहीं करनी पढ़ती, जैसा कहते हो वैसे ही मान जाती है।
ना जाने क्यों भाई से झगडा हुए भी ज़माना हो गया,
झगडा तोह छोटी सी किताब पहले पढने की बात से शुरू होता था,
जो की फिर ये मेरे कमरे और तेरे कमरे की दीवार तक पहुँच जाता था,
लेकिन फिर उसके बाद उसी किताब को एक साथ पढने में अलग ही आनंद आता था,
अब भाई इबुक की प्रतियाँ दोनों ही जगह कॉपी कर देता है,
जब जिसके मन में आये अपने अपने मोबाइल या लैपटॉप पर अकेले ही पढ़ लेता है।
अब दोस्तों के साथ शाम को घूमने भी नहीं जाता,
वही जिन के साथ शाम को नुक्कड़ की चाए वाले की दूकान पे गपशप लगा करती थी,
और किसकी ज़िन्दगी में क्या चल रहा उसकी खेर खबर मिलती रहती थी,
अब फेसबुक के ज़रिये जब चाहे तब दोस्तों की ज़िन्दगी के बारे में पता करते रहते हैं,
और एक कप चाय अब आधे घंटे के बजाये पांच मिनट में ख़त्म हो जाती है,
और हाँ फेसबुक पर दोस्तों से गले मिलने की हसरत भी पूरी नहीं हो पाती है।
अब छोटी बेहेन खरीदारी करवाने के लिए नहीं जिदद्ती,
पहले तोह एक ड्रेस लेने के लिए कम से कम दस दुकानों के चक्कर लगवाती थी,
और अंत में थक हार के फिर पहली दूकान में वापिस ले जाती थी,
लेकिन उस घुमने में दस बार मुझसे पूछती तोह थी की कैसी लग रही हूँ मैं,
अब "ebay" पर सारी चीज़े खुद ही चुन लाती है,
हमारी याद तोह सिर्फ पेमेंट के टाइम ही आती है,
तोह हमने ऐसा कार्ड कार्ड बनवा दिया है जो हमेशा उसी के पास रहे,
हमें बुलाने में बेचारी बार बार कष्ट क्यों सहे।
आज कल ना जाने क्यों वोह सपने कहीं सो गए................
No comments:
Post a Comment