Monday, November 17, 2014

दोस्तों, कल किसी ने याद दिलाया की मैं लिखता था कभी, और उसी ने ये एहसास भी कराया की शायद में कहीं खो गया था दुनिया की इस भीड़ में इसी लिए अपने विचार प्रकट करे हुए ज़माना  हो गया। तोह सबसे पहले उस प्यारे से शख्स का शुक्रिया जिसने मुझे वापिस आने में मेरी मदद की और आज में ये लिख पाया।

सपने देखता हूँ मैं, कुछ बड़े, कुछ छोटे, कुछ उन्सुल्झे,
कुछ पराये और कुछ अपने देखता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।
कुछ आशा की किरण दे जाते हैं,
कुछ दिल में जाने कितने सितार बजातें हैं,
कुछ कहते हैं ज़रा ठहर और विचार कर, 
कुछ कहते हैं जो भी करना है बिंदास कर,
तोह इन्ही सब विचारों के लिए, सबको देखता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।

किसी में नदी के किनारे पर ठंडी हवा का झोंका,
किसी में किसी दोस्त ने हाथ पकड़ कर मुझे रोका,
किसी में प्यार भरे पलों से सजी हुई राहें,
किसी में खुदा खुद खड़ा था फैलाये अपनी बाहें,
किसी में पाओं के नीचे फूलों से सजी धरती,
किसी में मुझे खुद प्रकर्ति अपनी बाँहों में भरती,
तोह इसी खुशनुमा पलों के जैसे खुद को देखता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।

कभी बिना पंखों के आकाश की सवारी,
कभी खुदा की कुदरत ज़मीन पर उतारी,
कभी चाँद ने धरती पर अपनी चांदनी बिखारी,
कभी सूरज की तपिश से भबकी धरती सारी,
कभी किसी ने आँखों को भिगोया,
कभी किसी से मुस्कराहट फैली प्यारी,
बस इसी भावों में गोता लगाते हुए मोती समेटता हूँ मैं,
हाँ सपने देखता हूँ मैं।