Monday, May 23, 2011

मेरे घर के सामने....

 आज दादाजी सुबह की मोर्निंग वाक से जल्दी घर आ गए और बहुत ख़ुशी ख़ुशी सबको द्रविंग रूम में बुलाने को कहा | सब जल्दी जल्दी अपना काम बीच में छोड़ रूम में पहुंचे तोह दादाजी बोले की आज वाक पर उनको पड़ोस वाले मल्होत्रा जी मिले जिन्होंने बताया की हमारे घर के बिलकुल सामने वाली रोड मेट्रो के रूट में आ गयी है, जिसका तात्पर्य था की अब मेट्रो हमारे घर के सामने से गुजरेगी और दादाजी ने ये भी बताया की एक दो हफ्ते में काम भी शुरू हो जायेगा | सब बहुत खुश हुए, पापा और हम इसलिए की हमारा घर भी अब दिल्ली के हर कोने से कनेक्ट हो जायेगा | दादा दादी इसलिए की भुआ के घर आने जाने में आसानी हो जाएगी, तभी मम्मी बोली की अरे तोह फिर तोह बहुत धुल मिटटी उड़ेगी, इसलिए अगले हफ्ते वेक्यूम क्लीनर का इन्तेजाम कर देना | पहले तोह पापा बोले की कोई धूल नहीं उड़ेगी लेकिन फिर मम्मी की नज़रों को देख कर बोले की हाँ भागवान ले आऊंगा आपका वक्युम क्लीनर | दो हफ्ते के अन्दर ही सड़क की खुदाई का काम शुरू हो गया और इसी के साथ हमारे आने जाने का रोज का रास्ता बंद हो गया | अब हम स्कूल १ किलो मीटर लम्बा चक्कर काट कर जाने लगे और पापा का चक्कर ५ किलोमीटर लम्बा हो गया | बसों का रूट भी बदल गया तोह अब मम्मी ने घर से रिक्शा करना शुरू कर दिया | अब भुआ भी कम ही घर आने लगी कहते थी आने जाने में बहुत टाइम लग जाता है | मम्मी भी शाम को वक्युम क्लीनर चलाने में बीजी रहने लगी, और कभी कभी दादाजी की नींद रात को खट खट से उठने लगी | लेकिन मजाल है किसी ने जरा सी भी शिकायत करी हो | दादाजी अब जब अपने खतों में "निअर मेट्रो स्टेशन" लिखते थे तोह बहुत ही गर्व महसूस करते थे | जब भी रिश्तेदार उन धूल भरे सोफों पर बैठते थे तोह हमेशा यही कहा करते थे की अब तोह आप भी हाई सौसाईंटी वाले होने वाले हो जी | चलिए एक दिन वोह भी आया जब हम ओफ्फिसिअल मेट्रो के सामने वाले हो गए यानि इनौग्रशन का दिन, सारी बच्चा पार्टी उस दिन छत पर उस पहली मेट्रो के को देखने पहुँच गयी, वैसे तोह त्र्यल रन के दौरान वोह कई बार इसे देख चुके थे लेकिन अबकी बात ही कुछ और थी | अब दादा दादी का आना जाना आसान हो गया, भुआ के घर दादी अकेले भी चले जाया करती थी | पापा भी अब मेट्रो से ही ऑफिस जाने लगे, बोलते हैं सफ़र बहुत आसान हो गया है | हम भी अब दोस्तों से मिलने मेट्रो में ही जातें हैं और मम्मी भी मेट्रो में ही अपनी किट्टी पार्टी के लिए निकलती हैं | फिर एक दिन पापा के किसी दोस्त ने आकर बताया की प्रोपर्टी के दाम मेट्रो की वजह से दो गुने हो गए हैं, लेकिन दादाजी के अनुसार तोह इस माकन में उनके पिता का आशीर्वाद बस्ता है, तोह दो गुना हो या चार गुना हमें क्या फर्क पड़ता है | लेकिन मेट्रो सामने से क्या जाने लगी घर का मिजाज़ बदल गया है, पहले दादाजी बिना बनियान के छत पर चले जाया करते थे पर अब इतनी गर्मी में भी उन्हें कुरता या शर्ट चाहिए | अब छत वाले कमरे में भी हमने स्पेशल काले वाले शीशे लगवाए हैं, और घर की लेडिस को स्पेशल हिदायत मिली है की बिना पल्लू  किये छत पर न जाए | अब दादाजी की सुबह सुबह छत पर गुड गुड कर गला साफ़ करने की आवाज़े नहीं आती है, और बगल वाले घर पर लगे होर्डिंग्स से नए नए प्रोदुक्ट्स के बारे में पता लगता रहता है | बच्चे अब रात को छत पर सोने नहीं जाते, कहते है की कमरे में सोने ज्यादा अच्छा लगता है और न ही मम्मी और दादी बाल सुखाने छत पर जाती हैं | पहले जो एरिया बिलकुल शात्न्त और रिहायशी हुआ करता था अब वहां दुकाने ओफ्फिसस का खुलना शुरू हो गया है, अनजान लोगों की भीड़ कोलाहल मचाते हुए अब बालकोनी में खड़े लोगों को भी नहीं बक्ष्ती | सड़क ठीक होने के बाद बस स्टॉप फिर अपनी जगह पर आ गया है जो की पैदल का ही रास्ता है लेकिन स्टेशन तक पहुँचने के लिए रिक्शे वाले को दस रूपए देने ही पड़ते हैं | घर में छुटकी का कहना है की इतने रूपए में तोह वोह बस से स्कूल में आना जाना दोनों कर लेगी और जितना टाइम रिक्शा वाले से मोल भाव करेगी इतने टाइम में तोह वोह स्कूल ही पहुँच जाएगी........